विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 19)
"इतनी अधिक उर्जा! मैंने स्वयं को इतना शक्तिशाली कभी महसूस नही किया।" ग्रेमन अपने बदन पर उठ रही लहराती ऊर्जा तरंगों को देख खुशी से भरकर बोला। उसकी शैतानी आँखों में अद्भुत चमक बढ़ रही थी, उसके देह में बिजली की तरंगों की भांति ऊर्जा दौड़ रही थी।
"यह तो कुछ भी नही है! आपको जितनी ऊर्जा चाहिए मिलेगी लार्ड ग्रेमन!" ऐश चेहरे पर खौफनाक मुस्कान सजाते हुए बोली। अब वे तीनों (डार्क फेयरीज़ और मैत्रा) पूरी तरह ग्रेमन के वश में थीं।
"अब हम उस तुच्छ नराक्ष का चुटकी बजाकर अंत कर देंगे हाहाहा…!" ग्रेमन अपने शरीर से उठ रही इन स्याह तरंगों को देखकर बहुत खुश हो रहा था। उसने आज से पहले स्वयं को कभी इतना शक्तिशाली महसूस नही किया था।
"नही स्वामी!" डार्क लीडर ने उसे टोका। "अब उस तुच्छ नराक्ष को भूल जाइए, उस कीड़े की आपके इस शक्तिशाली रूप के सामने कोई हैसियत नही है।" डार्क लीडर, ग्रेमन को समझाते हुए बोला। "अब हम अपनी अजेय सेना के साथ इस संसार को ध्वस्त करेंगे।"
"परन्तु यदि यही तुच्छ जीव हमारी राहों में रोड़ा बना तब?" ग्रेमन, नराक्ष को लेकर सदैव चिंतित रहता था।
"ऐसा जब होगा तब देखा जाएगा लार्ड ग्रेमन! फिलहाल यह समय, इस संसार को आपकी शक्तियों से तोहफा देने का है, हम उजाले की दुनिया को इतनी यातनाएं देंगे, इतने अधिक निर्ममता से भयंकर तबाही मचाएंगे कि अंधेरा स्वयं ही आपको अपना ईश्वर घोषित कर लेगा हाहाहा…" डार्क लीडर अट्ठहास करते हुए बोला।
"तुम सही कहते हो डार्क लीडर!" अपने आसन से उठता हुआ ग्रेमन कहता है उसकी आँखों में शैतानी चमक थी। "अब जाओ अपने डार्क गार्ड्स को एकत्रित करो।" ग्रेमन उसे अपनी ऊर्जा का एक बड़ा अंश देते हुए कहा। डार्क लीडर को ऐसा महसूस हुआ कि इससे अगर थोड़ी और ऊर्जा मिल जाती तो वह गुब्बारे की भांति फट जाता, जबकि उसे यही भ्रम था कि उसकी शक्तियां अनन्त हैं।
"उसकी आवश्यकता नही होगी स्वामी! जो भी हमारे हाथों मरेगा वह स्वतः ही डार्क गार्ड बनता जायेगा" शैतानी हँसी हंसता हुआ डार्क लीडर बोला। इस समय उसके सिर में जल रही आग की लपटे बहुत ऊंची हो गयी थीं।
"बोटी-बोटी करके टुकड़े बिखेर देना डार्क लीडर! किसी पर भी दया करने कोई दया करने की धृष्टता न करें अन्यथा उसके हाथों से उसका यह जीवन छीन लिया जाएगा।" ग्रेमन बड़े ही भयानक स्वर में बोला। उसे सुनकर डार्क लीडर भी एक क्षण को घबरा गया।
"ऐसा ही होगा स्वामी! अब चारो सिर्फ आपका ही राज्य होगा। आतंक का राज्य!" डार्क लीडर जोश भरे स्वर में बोला।
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"विस्तार!" वह बार-बार इसी शब्द को बुदबुदा रहा था।
हवाएं जोर से चलने लगीं, उसके केश हवा में लहराने लगे। अचानक से उसे वहां किसी के होने का आभास हुआ, उसकी मुट्ठियां भींच गयी। वहां पर वीर आया हुआ था, वह विस्तार से कुछ ही दूरी पर जाकर हवा में ठहर गया। विस्तार उसे देखकर यह तय नही कर पा रहा था कि वह उसका मित्र है अथवा शत्रु!
"मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा कि तुम आ गए! तुम्हें ज्ञात भी नही है कि तुम विशुद्ध अंधकार की शक्ति से बने हुए हो। चलो हमारे स्वामी ने तुम्हें बुलाया है।" वीर बड़े मीठे स्वर में बोला और अपने साथ चलने का इशारा किया। विस्तार न चाहते हुए भी उसकी ओर बढ़ने लगा, क्योंकि वह अब तक नही जान पाया था कि वह कौन है क्या है!
"तुम कौन हो? हमारा स्वामी कौन है? मैं कौन हूँ?" विस्तार एक के बाद एक प्रश्न करता गया।
"मैं तुम्हारा मित्र हूँ! हमारे स्वामी अंधकार के ईश्वर हैं और तुम विस्तार हो।" वीर थोड़ा ठहरकर उसकी बराबरी में होकर उड़ते हुए बोला।
"विस्तार..! हाँ मुझे बस यही याद है। मेरे पास इसके अतिरिक्त अन्य कोई स्मृति शेष नही है।" विस्तार को स्वयं के बारे में जानने की तीव्र इच्छा होने लगी।
"इस समय बस तुम्हारा इतना ज्ञात होना भी बहुत है। तुम्हें शीघ्र से शीघ्र हमारे स्वामी की सेवा में पहुँचना चाहिए।" वीर मुस्कुराते हुए बोला। अब ब्रह्मेश अपनी सारी स्मृतियां खोकर विस्तार बन चुका था। विस्तार, वीर पर अविश्वास तो जताना चाहता था परन्तु न जाने क्यों वह उसकी बातों पर विश्वास करता जा रहा था। वीर के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थिरक उठी, विस्तार सबसे अनजान नराक्ष के पास पहुँचने ही वाला था और अब वह अपनी सारी स्मृतियां भूलकर इस अंधकार की सेवा में जुट गया।
(नोट : नराक्ष की ऊर्जा ने ब्रह्मेश को 'विस्तार शक्ति' तक पहुँचाया और उसे ब्रह्मेश के शरीर में जागृत किया है। इसी प्रकार डार्क फेयरीज़ एवं मैत्रा को ग्रेमन के कारण जगाया गया इसलिये वे भी ग्रेमन की आज्ञा मानने को बाध्य हैं। अब अंधेरे के इन दोनों ही दलों में महाशक्तिशाली एवं अजेय शक्तियां मौजूद हैं।)
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शाम होने को थी, सूरज बादलों के ओट में छिपा जा रहा था। अब आसमान में बस हल्की लाली दिखाई दे रही थी, धीरे धीरे आसमान पीला फिर नीला और अब काला पड़ने लगा था। गांव के मैदान में खेल रहे बच्चे दौड़ते हुए अपने-अपने घर जाने लगे थे। उनके साथ कुछ बड़े लड़के-लड़कियां भी खेल रहे थे जो कि अब घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे।
निर्मला दौड़ते हुए पास में बह रही छोटी नदी में गयी और अपना हाथ मुँह धोने लगी। तभी उसे पास से कुछ अजीब स्वर सुनाई दिया, निर्मला को बचपन से भूत प्रेत की कहानियां सुनने का बड़ा शौक था। अजीब आवाज सुनकर वह उसकी ओर बढ़ी, यह आवाज नदी के ऊपर की ओर जंगल से आ रहा था। निर्मला बड़े ध्यान से कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ रही थी, शाम गहरी होती जा रही थी, धीरे-धीरे उसके मन में एक अजीब सा डर भरने लगा।
"नीलम, नव्या!" निर्मला वापस मैदान की ओर भागते हुए अपनी सखियों को आवाज दी। वे दोनों घर जाने को निकल चुकी थी पर निर्मला की आवाज सुनकर उसकी ओर दौड़ी चली आयी। गांव में बाकी सबको भली भांति ज्ञात था कि ये बड़े होने के बाद भी बच्चों वाली हरकते करती हैं इसलिए किसी ने उनपर कोई विशेष ध्यान न दिया।
"उधर से कोई आवाज आ रही है!" इससे पहले वे दोनों कुछ बोलती निर्मला ने स्वयं ही कहा।
"किधर से?" नीलम पूछी, जवाब में निर्मला हाथ से पहाड़ की ओर इशारा करने लगी।
"अरे इसको तो हर जगह बस भूत प्रेत ही नजर आते हैं! चल घर चलते हैं।" नव्या, नीलम को खिंचती हुई बोली।
"मैं मजाक नही कर रही हूँ नवी! उधर सच में कुछ है।" निर्मला अपनी बात का यकीन दिलाने के लिए बात पर जोर देकर बोली।
"मैं ऐसे कैसे मान लू? पिछली बार पूरा जंगल घुमाया था तुमने। अब जल्दी घर चल वरना घर जाकर चाची जी से डांट सुनना। हमको तो नही सुनना भई इसलिए हम तो चलते हैं।" नव्या उसे घूरते हुए घर की ओर जाने लगी।
"अब शाम हो गयी है, जंगल से आवाज आना कोई बड़ी गम्भीर बात तो नही है न!" नीलम भी नव्या का समर्थन करते हुए बोली।
"ठीक है यार! पर मुझे सच में कुछ अजीब लग रहा है। डर सा…!" निर्मला उनकी ओर बढ़ते हुए बोली।
"वाह इनके ही बारे में प्रसिद्ध है कि ये भूत से भी बात करके आ सकती है ना?" नव्या ने व्यंग्य किया। नीलम जोर-जोर से हँसने लगी।
"हां तुम जैसी चुड़ैल सखियों से रोज पाला पड़े तो क्यों नही!" निर्मला पैर पटकते हुए बोली। अचानक वह स्वर तेज होने लगा, जैसे वह इनके ही पास आता जा रहा हो। नव्या की धड़कनें तेज होती जा रही थी, वैसे भी निर्मला रोज उसे भूत प्रेत वाली कहानियां सुनाती जिसमें सब रहस्यमय घटनाएं होती थी, इसलिए उसकी हालत और खराब थी।
"यहां सच में कुछ अजीब लग रहा है जल्दी घर की भागों।" नीलम दोनों को खिंचती हुई भागने लगी पर वे दोनों बूत बनी हुई खड़ी थी।
तभी वहां तेज स्वर उभरा, जैसे कोई बड़ा जीव डकार मार रहा हो। अचानक वहां एक विचित्र प्राणी प्रकट हुआ, हवा उसके आर पार गुजर जा रही थी, उसकी कोई शारारिक संरचना नही थी। उसने अपने चेहरे को पकड़कर जोर से झटका तो चेहरे पर दो बड़ी चमकदार भयंकर आँखे उत्पन्न हो गयी। अगला झटका देते ही खट्ट-खटाक के स्वर के साथ चेहरे पर भयानक मुँह जिसमें बड़े बड़े दाँत थे। हाथों में विशाल नाखून जिसपर खून लगा हुआ था और वह प्राणी बड़े ही मजे से चटकारे लेते हुए अपनी उन उंगलियों को चाट रहा था। यह देखते ही नीलम का भी रोम-रोम सिहर गया वह बहुत जोर से चीखना चाहती थी मगर उसके मुँह से कोई स्वर न निकला।
वह प्राणी निर्मला की ओर झपटा, तीनो की आँखे यह सब देख रही थी मगर डर के मारे शरीर साथ नही दे रहा था। नव्या उस प्राणी को अपनी ओर बढ़ते देख डर के मारे बेहोश होकर वहीं गिर गयी।
वह प्राणी निर्मला के चेहरे पर अपना नुकीला गड़ाने ही वाला था, नीलम ने अपनी आँखों को जबर्दस्ती बन्द कर लिया, निर्मला को अपनी दुनिया का कोई होशहवास ही न था, उसकी आंखे फैलकर बड़ी होती बस मौत को अपनी ओर बढ़ते देख रही थीं।
निर्मला की ओर झपटा प्राणी अचानक दूर जा गिरा। उसके पंजे से निर्मला के गाल कट गए थे, वहां किसी जानवर के पंजे के समान निशान दिखाई दे रहा था, कटे हुए घावों से रक्त की धारा बह निकली। उसे भयंकर दर्द महसूस हुआ जिस कारण उसकी तन्द्रा भंग हुई वह नीलम को वहां अपनी आँख बंद किये खड़ा देखी वही नव्या बेहोश पड़ी थी। वह जल्दी से नदी में जाकर अपना चेहरा धोई और उन दोनों पर पानी सींचने लगी। पानी पड़ने के कारण नव्या और नीलम दोनों होश में आ गयी, पास में वह प्राणी दूसरे अजीब प्राणी से लड़ रहा था जिसका सिर जल रहा था।
"भागों!" निर्मला जोर से चीखते हुए वहां से भागने लगी, भागते भागते वे तीनो वहां से कुछ दूर आ गयी। तीनो डर के मारे बुरी तरह कांप रही थी, वे चिल्लाकर उन प्राणियों के बारे में सबको बताना चाहती थी पर उनकी आवाज गले में ही बैठ गयी थी। पूरी ताकत लगाने के बाद भी बहुत धीमी आवाज निकल रही थी।
"आज तो भगवान ने ही बचा लिया।" निर्मला उस जलती खोपड़ी वाले का शुक्रिया अदा करते है बोली।
"अब से कभी कोई भूतहा कहानी मत सुनाना!" नव्या गुस्से में बोल रही थी पर उसकी आँखों से आँसू बहता जा रहा था।
"तुम यहाँ क्या करने आये हो?" धुंए से अजीब प्राणी उस जलती खोपड़ी वाले से क्रोधित स्वर में पूछा।
"अपने अंधकार के देवता की सेवा में समर्पित हूँ मैं।" कहते हुए उस जलती खोपड़ी वाले प्राणी ने दूसरे प्राणी को जमीन पर पटक दिया पर आश्चर्य वहां से कोई स्वर उत्पन्न न हुआ।
"अंधकार के देवता मेरे स्वामी नराक्ष हैं मूर्ख डार्क गॉर्ड!" वह विचित्र जीव खूंखार स्वर में बोला। वह उसकी जलती हुई खोपड़ी में प्रवेश कर फट गया, जिससे वह डार्क गॉर्ड वहीं जमीन पर भदद से गिर गया। उसके जमीन पर गिरते ही वह प्राणी निर्मला एवं उसकी सखियों की ओर बढ़ा, अब तक उनके घर से कुछ लोग ढूंढते हुए यहां तक आ चुके थे। वह प्राणी अब पहले से अधिक बड़ा दिखाई दे रहा था।
जैसे ही उसने नीलम की ओर हाथ बढ़ाया, गांव वाले उसपर पत्थरों की बरसात करने लगे परन्तु आश्चर्य पत्थर उसके शरीर से बिना टकराये उस पार निकल गए जैसे वहां हवा के अतिरिक्त कुछ भी नही हो। भय के कारण वहां उपस्थित सभी की दशा बिगड़ने लगे, ठंडी की इस सुहावनी शाम में भी पसीने से तर-बतर हो गए। सभी अपने इष्ट देवताओं से अपने जीवन रक्षा की प्रार्थना करने लगे।
आगे बढ़ता हुआ वह जीव निर्मला के गले को अपने तेज धार नाखूनों से काट दिया, उसके गले से गूँ-गूँ का स्वर उभरा, आँखों से अश्रु की धार बहती जा रही थी। वह प्राणी निर्मला के रक्त को चाटते हुए चटकारे लेने लगा। यह देखते ही सभी ही दशा पहले से और अधिक खराब हो गया, भय के मारे किसी के मुख से एक स्वर भी न निकल रहा था। निर्मला के शरीर को दो टुकड़ों में मरोड़कर तोड़ते हुए वह जीव नीलम और नव्या की ओर बढ़ा। अपने एक ही हाथ में उठाकर अपने मुँह में डालकर विशाल नुकीले दांतों से चबा-चबाकर खाने लगा। असहनीय दर्द के कारण उनकी चीख उभरी परन्तु वह चीख गले से बाहर न आई। वह धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ने लगा।
तभी एक साथ कई जलती खोपड़ी वाले वहाँ नजर आए। उन सबके आगे वही डार्क गॉर्ड था जिसे इस जीव ने मार दिया था।
"डार्क गॉर्ड मरा नही करते हैं नराक्ष के नुमाइंदों!" एक साथ सभी डार्क गार्ड्स उस जीव की ओर बढ़ते हुए बोलें।
गांव वाले अभी की घटना देखकर बहुत बुरी डर चुके थे, इन जलती खोपड़ीवालों को देखकर उन्हें राहत मिली, वह जीव यहां से भाग गया। सभी गांव वाले उन डार्क गार्ड्स का धन्यवाद करने लगे, डार्क गार्ड्स के खोपड़ी की लपटें तेज हुई। चारों तरफ चीख पुकार गूँजने लगी, सर्द अंधेरी रात चारों ओर सर्द चीखें गूंज रही थी, वीभत्सता अपने चरम पर थी। हर एक को बुरी यातना देकर मार दिया गया। सुबह होने पर उस गांव में रक्त की नदी और विक्षिप्त शवों से पटे हुए पहाड़ के अलावा कुछ भी शेष न बचा था। आज सूरज के उगने से पूर्व ही, इस गांव का दिया बुझ चुका था। उन गांव वालों ने जिन्हें अपना रक्षक समझा वे भी मात्र पराये हाथों से अपना भोजन छिनने में जुटे हुए थे।
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"आज तुमने हमें अतिप्रसन्न कर दिया है डार्क गार्ड्स! तुमने नराक्ष के निवाले से उसका खाना छीन लिया, इससे वह अवश्य ही तिलमिलाया हुआ होगा।" ग्रेमन खुशी से फूले नही समा रहा था। आज उसका भयंकर स्वर भी डार्क गार्ड्स को अतिप्रिय महसूस होने लगा।
"नराक्ष अब आपके सामने कुछ नही है स्वामी! अब आपके एक-एक सैनिक के पास पूरी सेना के बराबर शक्ति है।" मैत्रा खड़े होते हुए बोली।
"पर न जाने कैसे अंधेरे का द्वार खुल गया है, जिससे अंधेरी शक्तियां उजाले की दुनिया में भी बिना नजर आए अपना कार्य कर सकती हैं। जो भी हो इससे हमारा फायदा ही होगा।" आँच ग्रेमन को देखते हुए बोली।
"अब आप जितना चाहें उससे भी अधिक शक्तियां पाएंगे स्वामी!" ऐश झुकते हुए बोली, उसकी राख समान देह चमक रही थी।
"उजाले की दुनिया को नष्ट कर दो! ताकि मैं अंधेरे को हर ओर फैला सकूँ।" ग्रेमन गरजते हुए बोला। उसकी आँखों में बड़ी तेजी से महत्वांकाक्षी आग जल रही थी। डार्क गार्ड्स यह सुनते ही खुशी से भर गए, आज उनके लिए खुशी का दिन था क्योंकि उन्होंने नराक्ष के मुख से निवाला छीना था जो कि असम्भव कार्य प्रतीत होता था, फिर भी उन्होंने इसे सम्भव किया।
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"तुम सबने हारने के बाद यहां आने की हिम्मत कैसे की?" नराक्ष सुपीरियर आर्मी पर भड़क रहा था।
"क्षमा स्वामी क्षमा! परन्तु अब वे डार्क गार्ड्स पहले से अत्यधिक शक्तिशाली महसूस हो रहे थे, जिस कारण हमने अपने सारे शिकार खो दिए।" सभी गिड़गिड़ाते हुए घुटनो पर झुककर दया की भीख मांगने लगे।
"यहां दया, क्षमा जैसे शब्दों का कोई अस्तित्व नही है मूर्खों!" नराक्ष के कुछ कह पाने से पहले वीर गरज पड़ा। "महान नराक्ष को यानी अंधकार के देवता को ना सुनने की आदत नही है।"
"हमारा विश्वास कीजिये स्वामी। ग्रेमन और डार्क गार्ड्स के पास कोई महान शक्ति स्त्रोत अवश्य है।" एक विचित्र जीव फिर गिड़गिड़ाने लगा।
नराक्ष ने अपने हाथ को हिलाया, वे सभी वहां धूल कणों में बदलकर समाप्त हो गए।
"नराक्ष को कोई बहाना स्वीकार नही।" नराक्ष की आँखे दहक रही थीं।
"ये ग्रेमन क्या है स्वामी? क्या आपके कार्य को मैं कर सकता हूँ!" वीर के पास खड़ा विस्तार नराक्ष से बोला।
"अवश्य! इस समय तुम अपनी शक्ति के अंश को वीर एवं सुपीरियर आर्मी को दो, ताकि हमारा मुकाबला बराबरी का हो। अब हमें यह देखना है कि उसके पाले में कौन सी शक्ति लगी है।" नराक्ष विस्तार से बोला। "मुझे तुम्हारी सम्पूर्ण शक्ति चाहिए पुत्र..!"
"अवश्य स्वामी.." विस्तार के चेहरे पर शैतानी मुस्कान ठहर गयी।
क्रमशः…..
Farhat
25-Nov-2021 06:33 PM
Good
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Barsha🖤👑
25-Nov-2021 06:18 PM
बहुत बढ़िया भाग।रोचकता बरकरार।
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Aliya khan
21-Jul-2021 12:07 AM
Badiya
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